Friday, January 8, 2010

तुम बोले तो लगा लबों पे अमृतघट क्या धरना है,
तुमको पाकर लगा आग की लहरों पे क्या तिरना है,
तुम्हें छुआ तो लगा जिन्दगी जैसे बहता झरना है,
मुझे समन्दर होना है ऐ दरिया! अब क्या करना है?

- अतुल कनक जी

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